बाहरी राज्यो में फंसे लोगों का दर्द की कहानी
देहरादून : उत्तराखंड
शहर गए तो थे बड़े सपने लेकर पर अब वहां हौसला भी खो आये । ये बात में कर रहा हु जो लोग उत्तराखंड की पहाड़ी जगहों से बहार शहरो में रोजी रोटी कमाने गए थे । आज वो लोग अपने प्रदेश में वापिस लौट चुके है और उन्होने अपना दर्द कुछ इस प्रकार से व्यक्त किया और बताते है संकट की घड़ी में जिन लोगों ने मदद करनी थी, उन्होंने भी उनकी कोई मदद नहीं की है और मकान मालिक भी अपना किराया लेने में पीछे नहीं रही है ऐसे हजारों में हजारों लोग फंसे हुए थे जो कि आप अपने गृह राज्य वापस आ चुके हैं और परदेस में फंसे वक्त को याद करके बहुत भावुक हो गए हैं। कई लोगों ने तो यह भी कहा कि दोबारा शहर जाने का मन नहीं है, दुकान होटल शॉपिंग मॉल अन्य स्थानों में काम करने वाले लोगों ने कहा है कि उन्हें वेतन नहीं दिया गया नौकरी से निकालने की नौबत तक आ गई थी जेब में पैसे नहीं थे लेकिन मकान मालिक देने का दबाव बनाते रहे जो पैसा बचा था उससे मकान मालिक का किराया चुकाना पड़ा ।
ये लोग यही उत्तराखंड में रहकर ही कुछ करना चाहते हैं, इनमें से अधिकांश लोग दोबारा से शहर में नहीं जाना चाहते हैं यह लोग बोलते हैं कि अब जो भी है सब यहीं पर करेंगे दोबारा से वापस नहीं जाएंगे, तो यह बात तो ठीक है क्युकी उत्तराखंड में कोई यैसे बड़े उद्योग नही की जो की इंतने लोगो को रोजगार दे सके और उप्पर से कोरोना के चलते यहाँ का टूरिज्म भी ठप पड़ गया है, तो अभी हमें कुछ अपने बारे में सोचने की जरूरत है । कुछ अपने लिए स्वरोजगार की सम्भावनाएँ बननी पड़ेगे, ये इतने जल्दी नही होगा थोड़ा टाइम लगेगा पर अगर आपके पास कोई सही आईडिया है तो आप उसपे काम कर सकते है ।
सायद मेरे इस बात से बहुत सारे लोग सहमत नही होंगे, आपलोगो ने देखा होगा की आपने घर की आसपास की जो दुकाने है वह जायदातर बहार के लोगो की है और हम लोग उन्ही लोगो से सामान इत्यादि खरीदते है में ये नही बोल रहा हु की आप उनको यहाँ से भगाओ, मेरे बोलने का मतलब है आप लोग भी कुछ वैसा कुछ कर सकते है । अपना छोटा मोटा बिज़नेस कुछ भी , मेरी बात पर जरूर धयान देना और एक बार सोचना जरूर ,ये में अपने वाक्तियगत राय है बाकी आप लोग अपना बेहतर सोचते है ।
आपका अपना : उपेंद्र सिंह रावत
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